अयोध्या राम मंदिर: निर्माण की कहानी, निर्माता और खर्च जाने पूरी सचाई सामने आया बहुत बड़ा खुलासा !
भारतीय इतिहास और संस्कृति में अयोध्या का एक विशेष स्थान है। यहाँ का राम जन्मभूमि के रूप में माना जाता है, जिसके बारे में अनगिनत कथाएँ और पुराणिक कहानियाँ हैं। इसी क्षेत्र में बाबर के शासनकाल में एक मस्जिद का निर्माण हुआ था, जिसके बाद से अयोध्या के राम भक्तों का मानना था कि वहाँ पर भगवान राम के मंदिर का निर्माण होना चाहिए। इस विषय पर विवाद चला और समय-समय पर यह विवाद राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बना रहा।
हम अयोध्या राम मंदिर के निर्माण की कहानी, निर्माता और निर्माण के खर्च पर चर्चा करेंगे।
अयोध्या राम मंदिर: निर्माण की कहानी:
अयोध्या का नाम हिन्दू धर्म के इतिहास में धर्म की भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पर भगवान राम का जन्म हुआ था और उनके पुरवजों द्वारा शासन किया गया था। अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम की कहानी ‘रामायण’ के माध्यम से प्रसिद्ध है। इसी कहानी के अनुसार, भगवान राम की अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ था।
हालांकि, अयोध्या का इतिहास विवादित भी है। 16वीं सदी में मुग़ल बादशाह बाबर के शासनकाल में, 1528 में उनके सैन्य ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण किया। इस मस्जिद का नाम ‘बाबरी मस्जिद’ था, जिसका निर्माण एक पूर्व राम मंदिर के स्थान पर हुआ था, जिसे हिन्दू धर्म के अनुयायी ‘राम जन्मभूमि’ कहते हैं।
बाबरी मस्जिद के निर्माण के बाद से ही राम मंदिर के निर्माण की मांग बढ़ी। अयोध्या के हिन्दू धार्मिक नेता और संत महांत अवैद्यनाथ के द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया और उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का आह्वान किया।
1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, भारतीय राजनीति में अयोध्या मुद्दा और तेजी से बढ़ गया। समाज में भारी असमंजस और बदलाव के बावजूद, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग अटूट रही।
निर्माता :
अयोध्या राम मंदिर के निर्माण के लिए एक विशेष संगठन था, जिसका नाम ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास’ था। इस संगठन के मुख्य कार्यकर्ता महंत नृत्यगोपाल दास थे, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अग्रसर होने का आह्वान किया था।
निर्माण की प्रक्रिया :
1992 के बाद, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई। पहले तो इस प्रक्रिया में कई नामुमकिनताएं थीं। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों के बीच मतभेद थे और निर्माण की प्रक्रिया विवादों के बीच अटक गई थी।
2002 में, अयोध्या में एक विशेष आयोजन ‘रामलला विराजमान’ किया गया था, जिसमें भगवान राम की विराजमान मूर्ति का स्थानांतरण किया गया था। इसके बाद, निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आई और सार्वजनिक दान के अभियान की शुरुआत हुई।
निर्माण की प्रक्रिया में सबसे पहले यह निर्धारित किया गया कि मंदिर की नींव किस प्रकार की रखी जाए। इसके बाद, एक विशेष स्थान पर शिलान्यास करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इसके बाद, निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी रही क्योंकि विवादों के बावजूद विभिन्न अदालतों में मामला पेश किया गया और निर्माण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया और निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त निधि बनाने का आदेश दिया।
अयोध्या राम मंदिर:
निर्माण की कहानी, निर्माता और खर्च भारतीय इतिहास और संस्कृति में अयोध्या का एक विशेष स्थान है। यहाँ का राम जन्मभूमि के रूप में माना जाता है, जिसके बारे में अनगिनत कथाएँ और पुराणिक कहानियाँ हैं। इसी क्षेत्र में बाबर के शासनकाल में एक मस्जिद का निर्माण हुआ था, जिसके बाद से अयोध्या के राम भक्तों का मानना था कि वहाँ पर भगवान राम के मंदिर का निर्माण होना चाहिए। इस विषय पर विवाद चला और समय-समय पर यह विवाद राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बना रहा। हम अयोध्या राम मंदिर के निर्माण की कहानी, निर्माता और निर्माण के खर्च पर चर्चा करेंगे। अयोध्या राम मंदिर: निर्माण की कहानी अयोध्या का नाम हिन्दू धर्म के इतिहास में धर्म की भूमि के रूप में प्रसिद्ध है।
यहाँ पर भगवान राम का जन्म हुआ था और उनके पुरवजों द्वारा शासन किया गया था। अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम की कहानी ‘रामायण’ के माध्यम से प्रसिद्ध है। इसी कहानी के अनुसार, भगवान राम की अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ था। हालांकि, अयोध्या का इतिहास विवादित भी है। 16वीं सदी में मुग़ल बादशाह बाबर के शासनकाल में, 1528 में उनके सैन्य ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण किया। इस मस्जिद का नाम ‘बाबरी मस्जिद’ था, जिसका निर्माण एक पूर्व राम मंदिर के स्थान पर हुआ था, जिसे हिन्दू धर्म के अनुयायी ‘राम जन्मभूमि’ कहते हैं। बाबरी मस्जिद के निर्माण के बाद से ही राम मंदिर के निर्माण की मांग बढ़ी। अयोध्या के हिन्दू धार्मिक नेता और संत महांत अवैद्यनाथ के द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया
और उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का आह्वान किया। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, भारतीय राजनीति में अयोध्या मुद्दा और तेजी से बढ़ गया। समाज में भारी असमंजस और बदलाव के बावजूद, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की मांग अटूट रही। निर्माता अयोध्या राम मंदिर के निर्माण के लिए एक विशेष संगठन था, जिसका नाम ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास’ था।
इस संगठन के मुख्य कार्यकर्ता महंत नृत्यगोपाल दास थे, जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अग्रसर होने का आह्वान किया था। निर्माण की प्रक्रिया 1992 के बाद, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई। पहले तो इस प्रक्रिया में कई नामुमकिनताएं थीं। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों के बीच मतभेद थे और निर्माण की प्रक्रिया विवादों के बीच अटक गई थी। 2002 में, अयोध्या में एक विशेष आयोजन ‘रामलला विराजमान’ किया गया था,
जिसमें भगवान राम की विराजमान मूर्ति का स्थानांतरण किया गया था। इसके बाद, निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आई और सार्वजनिक दान के अभियान की शुरुआत हुई। निर्माण की प्रक्रिया में सबसे पहले यह निर्धारित किया गया कि मंदिर की नींव किस प्रकार की रखी जाए। इसके बाद, एक विशेष स्थान पर शिलान्यास करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इसके बाद, निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी रही क्योंकि विवादों के बावजूद विभिन्न अदालतों में मामला पेश किया गया और निर्माण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया और निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त निधि बनाने का आदेश दिया।
निर्माण के खर्च :
अयोध्या राम मंदिर के निर्माण के लिए अभियान की शुरुआत से ही लोगों का दानविरास और समर्थन मिला। इसके लिए अनेक देश-विदेश के नागरिकों ने अपने योगदान किया।
निर्माण के खर्च का आंकलन करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसके लिए विभिन्न संस्थाओं, व्यक्तियों और सरकारी अधिकारियों के द्वारा कई अलग-अलग संदर्भ हैं। लेकिन अनुमानित रूप से, अयोध्या मंदिर के निर्माण में करीब three hundred से four hundred करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है। यह राशि विभिन्न स्रोतों से आई है, जिसमें दान, संगठनों से अनुदान, और सरकारी योजनाएँ शामिल हैं।
सामापन :
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण अनेक वर्षों तक विवाद का विषय रहा है, लेकिन अंततः सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह निर्माण न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक महत्व का भी है। यह एक ऐतिहासिक कदम है जो भारतीय समाज के एकता और सामर्थ्य को दिखाता है। इस निर्माण के माध्यम से, अयोध्या में एक नया चेतना और आत्म-सम्मान का संदेश दिया जा रहा है, जो कि भारतीय समाज की एकता और एकात्मता को बढ़ावा देगा।